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अभिवृद्धि (Growth) और विकास (Development) दोनों ही जीवन की महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ हैं, लेकिन ये एक-दूसरे से काफी अलग हैं। इन्हें अक्सर एक ही मान लिया जाता है, जबकि इनके अर्थ और प्रकृति में बहुत बड़ा अंतर है। मुख्य अंतर यह है कि अभिवृद्धि मात्रात्मक (Quantitative) होती है, जिसे मापा जा सकता है, जबकि विकास गुणात्मक (Qualitative) होता है, जिसे मापा नहीं जा सकता, बल्कि महसूस किया जाता है। आइए, इन्हें और भी आसान तरीके से समझते हैं। अभिवृद्धि (Growth) अभिवृद्धि का सीधा संबंध हमारे शरीर में होने वाले बदलावों से है। यह वो परिवर्तन हैं जिन्हें हम आसानी से देख और माप सकते हैं। * मात्रात्मक: इसमें शारीरिक आकार, वजन, ऊँचाई और शरीर के अंगों में वृद्धि शामिल है। जैसे, बच्चे का वजन बढ़ना या उसकी लंबाई बढ़ना। * निश्चित अवधि तक: अभिवृद्धि एक निश्चित समय तक ही होती है, आमतौर पर परिपक्वता (Maturity) की उम्र तक। एक निश्चित उम्र के बाद यह रुक जाती है। * संकीर्ण या सीमित: यह केवल शारीरिक पहलू पर केंद्रित होती है। * उदाहरण: 10 साल के बच्चे का वजन 25 किलो से 30 किलो हो जाना, या उसकी लंबाई का बढ़ना। विकास (Development) विकास एक बहुत ही व्यापक और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसमें सिर्फ शारीरिक ही नहीं, बल्कि व्यक्ति के मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक और बौद्धिक पहलुओं में भी बदलाव शामिल होते हैं। * गुणात्मक: इसमें सोचने की क्षमता, तर्क करने की शक्ति, व्यवहार में सुधार, भावनात्मक परिपक्वता और सामाजिक समझ जैसे बदलाव आते हैं। * जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया: विकास जन्म से लेकर मृत्यु तक चलता रहता है। यह कभी नहीं रुकता। * व्यापक: यह अभिवृद्धि को भी अपने अंदर समाहित कर लेता है। यानी, अभिवृद्धि विकास का ही एक हिस्सा है। * उदाहरण: बच्चे का अपने पैरों पर खड़ा होना और चलना सीखना, समस्याओं को हल करने की क्षमता विकसित करना, या दूसरों के साथ बेहतर तरीके से बातचीत करना सीखना। तुलनात्मक तालिका यह तालिका दोनों के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से दर्शाती है: | आधार | अभिवृद्धि (Growth) | विकास (Development) | |---|---|---| | अर्थ | शारीरिक आकार, वजन, लंबाई आदि में वृद्धि। | शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक और बौद्धिक सभी क्षेत्रों में प्रगतिशील परिवर्तन। | | प्रकृति | मात्रात्मक (Quantitative)। इसे मापा जा सकता है। | गुणात्मक (Qualitative)। इसे महसूस किया जा सकता है। | | अवधि | एक निश्चित समय (परिपक्वता) तक चलती है और फिर रुक जाती है। | जीवन भर, यानी जन्म से मृत्यु तक चलती रहती है। | | क्षेत्र | संकीर्ण या सीमित। केवल शारीरिक पक्ष पर केंद्रित। | व्यापक। इसमें सभी तरह के परिवर्तन शामिल होते हैं। | | मापन | सीधा और आसान। जैसे, वजन या लंबाई मापना। | मुश्किल। इसे सीधे तौर पर नहीं मापा जा सकता। | | उदाहरण | ऊँचाई बढ़ना, वजन बढ़ना। | सोचना, समझना, तर्क करना, सामाजिक व्यवहार सीखना। | संक्षेप में, अभिवृद्धि हमारे शरीर के बाहरी बदलावों से संबंधित है, जबकि विकास हमारे व्यक्तित्व के आंतरिक और बाहरी दोनों तरह के बदलावों से संबंधित है।

 अभिवृद्धि (Growth) और विकास (Development) दोनों ही जीवन की महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ हैं, लेकिन ये एक-दूसरे से काफी अलग हैं। इन्हें अक्सर एक ही मान लिया जाता है, जबकि इनके अर्थ और प्रकृति में बहुत बड़ा अंतर है।bk sir  मुख्य अंतर यह है कि अभिवृद्धि मात्रात्मक (Quantitative) होती है, जिसे मापा जा सकता है, जबकि विकास गुणात्मक (Qualitative) होता है, जिसे मापा नहीं जा सकता, बल्कि महसूस किया जाता है। आइए, इन्हें और भी आसान तरीके से समझते हैं। अभिवृद्धि (Growth) अभिवृद्धि का सीधा संबंध हमारे शरीर में होने वाले बदलावों से है। यह वो परिवर्तन हैं जिन्हें हम आसानी से देख और माप सकते हैं।  * मात्रात्मक: इसमें शारीरिक आकार, वजन, ऊँचाई और शरीर के अंगों में वृद्धि शामिल है। जैसे, बच्चे का वजन बढ़ना या उसकी लंबाई बढ़ना।  * निश्चित अवधि तक: अभिवृद्धि एक निश्चित समय तक ही होती है, आमतौर पर परिपक्वता (Maturity) की उम्र तक। एक निश्चित उम्र के बाद यह रुक जाती है।  * संकीर्ण या सीमित: यह केवल शारीरिक पहलू पर केंद्रित होती है।  * उदाहरण: 10 साल के बच्चे का वजन 25 किलो से 30 किलो हो...

बाल्यावस्था (Childhood) की अवधारणा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य समय के साथ बहुत बदलता रहा है। यह धारणा कि बाल्यावस्था एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण चरण है, जिसे खेलने, सीखने और सुरक्षित रखने की आवश्यकता है, आधुनिक युग की देन है। प्राचीन काल में, और विशेष रूप से मध्ययुग में, बच्चों को अक्सर "छोटे वयस्क" (miniature adults) के रूप में देखा जाता था। 1. प्राचीन काल * प्राचीन भारत: प्राचीन भारतीय ग्रंथों, जैसे कि रामायण और महाभारत, में बच्चों के प्रति गहरा स्नेह और लगाव दिखाया गया है। बच्चे को ईश्वर का स्वरूप माना जाता था और पूरे समुदाय द्वारा उनका पालन-पोषण किया जाता था। हालांकि, उच्च वर्ग के बच्चों के लिए ही औपचारिक शिक्षा उपलब्ध थी। बच्चों की शिक्षा और देखभाल पर विशेष ध्यान दिया जाता था, लेकिन बाल्यावस्था की वर्तमान परिभाषा (एक अलग विकासात्मक चरण) उस समय मौजूद नहीं थी। * प्राचीन यूनान और रोम: यहाँ भी बाल्यावस्था की अवधारणा आज से बहुत अलग थी। बच्चों को अक्सर परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बनाए रखने का साधन माना जाता था। धनी परिवारों के बच्चों को घर पर पढ़ाया जाता था, जबकि गरीब परिवारों के बच्चों से छोटी उम्र से ही काम करवाया जाता था। 2. मध्ययुगीन काल (Medieval Period) * फ्रांसीसी इतिहासकार फिलिप एरीस (Philippe Ariès) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "सेंचुरीज़ ऑफ चाइल्डहुड" (Centuries of Childhood) में यह तर्क दिया कि मध्ययुगीन समाज में "बाल्यावस्था" की अवधारणा मौजूद नहीं थी। * एरीस के अनुसार, शिशुओं के बाद, लगभग 7 साल की उम्र से ही बच्चों को वयस्कों के बराबर माना जाता था। वे वयस्कों जैसे कपड़े पहनते थे और उनके साथ मिलकर काम करते थे। * उन दिनों, बच्चों की मृत्यु दर बहुत अधिक थी, जिसके कारण भावनात्मक लगाव कम होता था। बच्चे को संपत्ति या श्रम का एक हिस्सा माना जाता था। 3. आधुनिक युग का उदय (16वीं - 18वीं सदी) * पुनर्जागरण (Renaissance) और प्रबोधन (Enlightenment) के साथ, बच्चों के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आना शुरू हुआ। शिक्षा का महत्व बढ़ने लगा और बच्चों को भविष्य के नागरिक के रूप में देखा जाने लगा। * जॉन लॉक (John Locke) जैसे दार्शनिकों ने तर्क दिया कि बच्चे का मन "खाली स्लेट" (Tabula Rasa) की तरह होता है, और उनके अनुभव ही उन्हें आकार देते हैं। * जीन-जैक्स रूसो (Jean-Jacques Rousseau) ने अपनी पुस्तक "एमाइल" (Émile) में यह विचार दिया कि बच्चों को उनके स्वाभाविक तरीके से विकसित होने देना चाहिए। उन्होंने बच्चों को वयस्कों से अलग एक विशिष्ट श्रेणी में रखा, जिसे खेलने और सीखने के लिए एक अलग माहौल की आवश्यकता होती है। 4. 19वीं और 20वीं सदी * औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के बाद, बच्चों के काम करने पर रोक लगाने के लिए कानून बनाए गए। यह एक बड़ा सामाजिक बदलाव था, जिसने बच्चों को काम से हटाकर स्कूलों में भेजना शुरू किया। * मनोवैज्ञानिकों, जैसे कि स्टेनली हॉल (G. Stanley Hall) और सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud), ने बाल्यावस्था के विकास के चरणों का अध्ययन किया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि बाल्यावस्था वास्तव में एक अलग और महत्वपूर्ण विकासात्मक चरण है। * धीरे-धीरे, शिक्षा को सभी बच्चों के लिए एक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई। निष्कर्ष बाल्यावस्था की अवधारणा एक ऐतिहासिक रचना है, जो समय के साथ समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और दर्शन में हुए परिवर्तनों के कारण विकसित हुई है। आज बाल्यावस्था को मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण, संवेदनशील और संरक्षित चरण माना जाता है, जहाँ बच्चे को खेलने, सीखने और विकसित होने का अधिकार है।

 बचपन एक जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण और खूबसूरत दौर है। यह वह समय है जब हम दुनिया को एक नए दृष्टिकोण से देखते हैं, जहाँ हर दिन एक नया रोमांच होता है और हर छोटी चीज़ हमें खुशी देती है। यह समय है जब हम बिना किसी चिंता के जीते हैं, बस खेलने, सीखने और बढ़ने पर ध्यान देते हैं।बाल्यावस्था (Childhood) की अवधारणा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य समय के साथ बहुत बदलता रहा है। यह धारणा कि बाल्यावस्था एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण चरण है, जिसे खेलने, सीखने और सुरक्षित रखने की आवश्यकता है, आधुनिक युग की देन है। प्राचीन काल में, और विशेष रूप से मध्ययुग में, बच्चों को अक्सर "छोटे वयस्क" (miniature adults) के रूप में देखा जाता था। 1. प्राचीन काल  * प्राचीन भारत: प्राचीन भारतीय ग्रंथों, जैसे कि रामायण और महाभारत, में बच्चों के प्रति गहरा स्नेह और लगाव दिखाया गया है। बच्चे को ईश्वर का स्वरूप माना जाता था और पूरे समुदाय द्वारा उनका पालन-पोषण किया जाता था। हालांकि, उच्च वर्ग के बच्चों के लिए ही औपचारिक शिक्षा उपलब्ध थी। बच्चों की शिक्षा और देखभाल पर विशेष ध्यान दिया जाता था, लेकिन बाल्यावस्था की वर्तमान परिभा...

₹1 लाख का निवेश एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन स्टॉक मार्केट में निवेश करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है: 1. अपना लक्ष्य और रिस्क उठाने की क्षमता समझें (Understand Your Goal and Risk Appetite) * लम्बी अवधि (Long Term): यदि आप 5 साल या उससे ज़्यादा के लिए निवेश करना चाहते हैं, तो आप इक्विटी म्यूचुअल फंड या सीधे स्टॉक्स में निवेश कर सकते हैं. इसमें ज़्यादा रिटर्न मिलने की संभावना होती है, लेकिन जोखिम भी ज़्यादा होता है. * कम अवधि (Short Term): यदि आप कम समय के लिए निवेश करना चाहते हैं (जैसे 1-3 साल), तो स्टॉक मार्केट में सीधा निवेश उतना सही नहीं होगा. ऐसे में आप फिक्स्ड डिपॉज़िट (FD) या रेकरिंग डिपॉज़िट (RD) जैसे कम जोखिम वाले विकल्प देख सकते हैं. * जोखिम (Risk): ₹1 लाख के साथ, आप कुछ जोखिम उठा सकते हैं, लेकिन अपनी पूरी पूंजी को एक ही जगह पर न लगाएं. हमेशा विविधता (Diversification) रखें. 2. निवेश के विकल्प (Investment Options) ₹1 लाख के लिए स्टॉक मार्केट में कुछ अच्छे विकल्प ये हो सकते हैं: * इक्विटी म्यूचुअल फंड (Equity Mutual Funds): * यह उन लोगों के लिए बेहतरीन है जो स्टॉक मार्केट के बारे में ज़्यादा रिसर्च नहीं करना चाहते या जिनके पास समय कम है. * म्यूचुअल फंड में आपका पैसा कई अलग-अलग कंपनियों के स्टॉक्स में निवेश किया जाता है, जिससे जोखिम कम हो जाता है. * आप SIP (Systematic Investment Plan) के ज़रिए हर महीने एक छोटी राशि भी निवेश कर सकते हैं या एक बार में ₹1 लाख का Lump Sum निवेश कर सकते हैं. * उदाहरण: आप लार्ज-कैप, मिड-कैप या फ्लेक्सी-कैप फंड्स में निवेश कर सकते हैं. कुछ अच्छे म्यूचुअल फंड्स में Motilal Oswal Large and Midcap Fund, HDFC Mid-Cap Opportunities Fund, या Bandhan Core Equity Fund शामिल हैं. (ध्यान दें कि ये केवल उदाहरण हैं और निवेश से पहले खुद रिसर्च करें). * ब्लू-चिप स्टॉक्स (Blue-chip Stocks): * ये बड़ी, स्थापित और मज़बूत कंपनियों के शेयर होते हैं जिनका प्रदर्शन ऐतिहासिक रूप से अच्छा रहा है. इनमें निवेश करना अपेक्षाकृत कम जोखिम भरा होता है. * आप ₹1 लाख को 2-3 ब्लू-चिप स्टॉक्स में बांट सकते हैं. * उदाहरण: Reliance Industries, HDFC Bank, Tata Consultancy Services (TCS), Infosys, Hindustan Unilever Ltd (HUL), ITC, ICICI Bank. ये कंपनियां आमतौर पर स्थिर होती हैं और लम्बे समय में अच्छा रिटर्न दे सकती हैं. * ध्यान दें: MRF, Page Industries, Honeywell Automation, Bosch, Abbott India जैसी कंपनियों के शेयर की कीमत ₹1 लाख से ज़्यादा है, इसलिए आप इन कंपनियों के शेयर ₹1 लाख में नहीं खरीद पाएंगे, लेकिन आप अन्य ब्लू-चिप कंपनियों पर विचार कर सकते हैं. * ETFs (Exchange Traded Funds) या Index Funds: * ये ऐसे फंड होते हैं जो किसी विशेष इंडेक्स (जैसे Nifty 50 या Sensex) के प्रदर्शन को ट्रैक करते हैं. * ये म्यूचुअल फंड की तुलना में ज़्यादा लागत प्रभावी होते हैं और विविधता प्रदान करते हैं. 3. महत्वपूर्ण सुझाव (Important Tips) * रिसर्च करें (Do Your Research): किसी भी स्टॉक या फंड में निवेश करने से पहले उसके बारे में अच्छे से रिसर्च करें. कंपनी के प्रदर्शन, भविष्य की संभावनाओं और सेक्टर के रुझानों को देखें. * वित्तीय सलाहकार से सलाह लें (Consult a Financial Advisor): यदि आपको निवेश की ज़्यादा समझ नहीं है, तो किसी पेशेवर वित्तीय सलाहकार से सलाह लेना सबसे अच्छा रहेगा. वे आपकी जोखिम उठाने की क्षमता और लक्ष्यों के आधार पर आपको सही मार्गदर्शन दे सकते हैं. * धैर्य रखें (Be Patient): स्टॉक मार्केट में निवेश लम्बी अवधि के लिए होता है. बाज़ार में उतार-चढ़ाव आम बात है, इसलिए घबराकर जल्दबाजी में फैसले न लें. * एक साथ पूरा पैसा न लगाएं (Don't Invest All at Once): आप अपने ₹1 लाख को कई हिस्सों में बांटकर अलग-अलग समय पर निवेश कर सकते हैं (जैसे SIP की तरह), ताकि बाज़ार के उतार-चढ़ाव का फायदा उठा सकें (इसे Rupee Cost Averaging कहते हैं). ₹1 लाख के निवेश से आप स्टॉक मार्केट में अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं. सही रिसर्च और धैर्य के साथ, यह आपके लिए एक अच्छा निवेश साबित हो सकता है.

 ₹1 लाख का निवेश एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन स्टॉक मार्केट में निवेश करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है: 1. अपना लक्ष्य और रिस्क उठाने की क्षमता समझें (Understand Your Goal and Risk Appetite)  * लम्बी अवधि (Long Term): यदि आप 5 साल या उससे ज़्यादा के लिए निवेश करना चाहते हैं, तो आप इक्विटी म्यूचुअल फंड या सीधे स्टॉक्स में निवेश कर सकते हैं. इसमें ज़्यादा रिटर्न मिलने की संभावना होती है, लेकिन जोखिम भी ज़्यादा होता है.  * कम अवधि (Short Term): यदि आप कम समय के लिए निवेश करना चाहते हैं (जैसे 1-3 साल), तो स्टॉक मार्केट में सीधा निवेश उतना सही नहीं होगा. ऐसे में आप फिक्स्ड डिपॉज़िट (FD) या रेकरिंग डिपॉज़िट (RD) जैसे कम जोखिम वाले विकल्प देख सकते हैं.  * जोखिम (Risk): ₹1 लाख के साथ, आप कुछ जोखिम उठा सकते हैं, लेकिन अपनी पूरी पूंजी को एक ही जगह पर न लगाएं. हमेशा विविधता (Diversification) रखें. BK Sir  2. निवेश के विकल्प (Investment Options) ₹1 लाख के लिए स्टॉक मार्केट में कुछ अच्छे विकल्प ये हो सकते हैं:  * इक्विटी म्यूचुअल फंड (Equity Mutual Funds):  ...

B Ed. Ke baad kaun sa government job hai

 B.Ed. (बैचलर ऑफ एजुकेशन) करने के बाद सरकारी क्षेत्र में नौकरी के कई बेहतरीन अवसर उपलब्ध हैं, खासकर शिक्षण के क्षेत्र में। यहाँ कुछ प्रमुख सरकारी नौकरियाँ दी गई हैं जिनके लिए आप B.Ed. के बाद आवेदन कर सकते हैं: 1. सरकारी स्कूल शिक्षक (Government School Teacher) यह B.Ed. के बाद सबसे आम और लोकप्रिय करियर विकल्प है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती विभिन्न स्तरों पर की जाती है:  * प्राथमिक विद्यालय शिक्षक (Primary School Teacher - PRT): कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को पढ़ाते हैं। इसके लिए B.Ed. के साथ-साथ CTET (Central Teacher Eligibility Test) या संबंधित राज्य का TET (Teacher Eligibility Test) पास करना अनिवार्य होता है।  * प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (Trained Graduate Teacher - TGT): कक्षा 6 से 10 तक के छात्रों को पढ़ाते हैं। इसके लिए B.Ed. के साथ-साथ स्नातक की डिग्री (संबंधित विषय में) और CTET/TET पास करना आवश्यक है।  * स्नातकोत्तर शिक्षक (Post Graduate Teacher - PGT): कक्षा 11 और 12 के छात्रों को पढ़ाते हैं। इसके लिए B.Ed. के साथ-साथ स्नातकोत्तर की डिग्री (संबंधित विषय...

CTET KI TAIYARI KAISE KAREN

Bk Sir  CTET (Central Teacher Eligibility Test) की तैयारी के लिए आपको एक ठोस रणनीति और सही मार्गदर्शन की ज़रूरत होगी। यहाँ हिंदी में विस्तृत जानकारी दी गई है: 1. CTET परीक्षा को समझें (Understand the CTET Exam) सबसे पहले, CTET परीक्षा के पैटर्न और सिलेबस को अच्छी तरह से समझना बहुत ज़रूरी है। CTET में दो पेपर होते हैं:  * पेपर 1 (Paper 1): कक्षा 1 से 5 तक के शिक्षकों के लिए।  * पेपर 2 (Paper 2): कक्षा 6 से 8 तक के शिक्षकों के लिए। दोनों पेपर्स में 150-150 प्रश्न होते हैं और प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का होता है। इसमें कोई नेगेटिव मार्किंग नहीं होती है। Bk Sir  मुख्य विषय:  * बाल विकास और शिक्षाशास्त्र (Child Development and Pedagogy - CDP): यह दोनों पेपर्स में एक अनिवार्य और महत्वपूर्ण खंड है। इसमें बाल विकास के सिद्धांत, सीखने के तरीके, और शिक्षाशास्त्र से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं।  * भाषा I (Language I): आप अपनी पसंद की कोई भी भाषा चुन सकते हैं (जैसे हिंदी, अंग्रेजी)। इसमें समझ (comprehension) और भाषा विकास के शिक्षाशास्त्र से संबंधित प्रश्न होते हैं। ...

Bihar STET KI TAIYARI KAISE KAREN

 Bk Sir  बिहार STET (State Teacher Eligibility Test) की तैयारी के लिए यहाँ हिंदी में पूरी जानकारी और कुछ महत्वपूर्ण किताबों के बारे में बताया गया है: बिहार STET की तैयारी कैसे करें? बिहार STET परीक्षा को पास करने के लिए एक सटीक रणनीति और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण टिप्स दिए गए हैं: 1. सिलेबस और परीक्षा पैटर्न को समझें सबसे पहले, बिहार STET के विस्तृत सिलेबस और परीक्षा पैटर्न को अच्छी तरह से समझें। यह परीक्षा दो पेपरों में होती है - पेपर 1 (माध्यमिक स्तर - 9वीं और 10वीं कक्षा के लिए) और पेपर 2 (उच्च माध्यमिक स्तर - 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए)। दोनों पेपर 150 अंकों के होते हैं और इसमें 150 वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं। प्रत्येक सही उत्तर के लिए 1 अंक मिलता है और कोई नेगेटिव मार्किंग नहीं होती। Bk Sir  2. एक प्रभावी अध्ययन योजना बनाएं अपने समय और कमजोरियों के अनुसार एक यथार्थवादी और संतुलित अध्ययन योजना बनाएं। सभी विषयों को पर्याप्त समय दें और रिवीजन के लिए भी समय निकालें।  * कमजोर क्षेत्रों को पहचानें और उन पर अधिक ध्यान दें। ...

B.Ed second year guidance and counselling important questions

 BK sir  बी.एड. (B.Ed.) के "निर्देशन एवं परामर्श" (Guidance and Counselling) विषय में महत्वपूर्ण प्रश्नों की सूची नीचे दी गई है, जो अक्सर परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। इन प्रश्नों को तैयार करके आप इस विषय में अच्छी पकड़ बना सकते हैं: महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions):  * निर्देशन (Guidance):    * निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी अवधारणा, अर्थ, प्रकृति, आवश्यकता और सिद्धांतों का विस्तार से वर्णन करें।    * शैक्षिक निर्देशन, व्यावसायिक निर्देशन और व्यक्तिगत निर्देशन में अंतर स्पष्ट करें। शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर इनकी आवश्यकता क्यों है?    * विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के संगठन और प्रशासन की व्याख्या करें। एक प्रभावी निर्देशन कार्यक्रम को कैसे लागू किया जा सकता है?  * परामर्श (Counselling):    * परामर्श क्या है? इसके अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, आवश्यकता और सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन करें।    * परामर्श के विभिन्न प्रकारों (जैसे निर्देशात्मक, गैर-निर्देशात्मक, समन्वयात्मक) की सविस्तार व्याख्या...